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( ११ )
तवस्सयौहमे, गोयमनमो लिगाए॥नाचारित्र ज्ञान सुनस्स नेंभे, नभो तिथ्यस्स भएगी॥ग्नि बीत्तम पह पद्मनें, नमतां होय सुज जाएगी॥॥॥र्धतिरजा
॥ अथ वीशस्थान तपना जस्सग्गनुं यैत्यवंन ॥
॥ थोचीत्रा पन्नर पिस्तालीशनो, छत्रीशनोरियें ॥ घ्श पथ वीश सत्तावीशनो, डाडीस्सरण भन घरिये ॥षा पंथ सडसहि दृश वली, सित्तेर नव परावीश॥जार सडवीश बोगस तएगो, अडीस्सरण घरोगुएलीश ॥शाचीश सत्तर खेडावन्न, द्वाहशने पंथाचे लिपेरें डाडीस्सरण ब्लेडरे, तोन्नये लवसंथ ॥ जनुक्रमें डाडीस
मन घरो, गुशि लेने वीशाावीश स्थानङ सेभ न्नशिखें, संक्षे पथी सेशनाभावपरी भनभां घएगो, ले जेङपह आराधन नवीत्तभ पह पद्मने, नमिनिन अर्थ साधे ॥ध॥ पर्छति॥श्ना
॥ जय जीन्नुं चैत्यवंदन ॥
॥ दुविध धर्मोपदेश्यो, पोथा जलिनंदन ॥जीतें न म्या ते प्रलु, लवदुः। निकुंदन ॥शादुविध घ्यान तुझें परिहरो,आहरो होय घ्याना प्रेम ममश्यं सुमति निनें, ते यवीया जीन हि ब्नाशाहोय जंघन रागद्वेष, तेहुने लवितळयें।। मुन्परें शीतस ग्नि है, जीन हिन शिव ललयें ॥किवा लव पहार्थनुं, अरोनाए। सुन्नए जीनहिनें वासुपूज्य परें, सही डेवल नाएा । मानिश्य यनयव्यवहार होय, जेठांत न ग्रहिझें ॥ग्नरनिन जीन हिनें यवी, प्रेम निज नाणल दुहियें ॥ चावर्त्तमान योगीशी खे, जेमनि नमुल्याग गजीन हिनें देर्ध पाभिया, प्रत्तु नाएा निर्वाए। दु श्भ अनंत धोवीशी में, हुमां जहु टुट्याए। ॥निन जीत्तमप
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