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________________ (૨૬) लगबुंडापड उरशुं, माथे छत्तर घरशुं ॥ पणापाये पानही पेश्शुं, स्नानशु यी नसें उश्शुंग प्राणी थूल नहीं भाई, जर मुंड पोटी जे पारं शापशाननो धे सोवन डेरी, शोला पंहनलसेरी ॥ हार्थे त्रिदंडयं सेवु, भनभांहे चिंतयुं जेहेषु ॥शा लिंग विंगनुं स्थीतीं, सुज डारएाग्ने मयी॥शुए साधु नावजाएरो, हीक्षा योगते न्नएणे ॥१॥ आएगी न तिखोने आापे, सुयो मारण थापे । समोवसरए। स्युंलगी, बांहे लरत विनाएगी॥श्नाजारे परषहा राजे, पूछे लरत भेजाने गाडीर्घ छे तुम सरिजो, हाज्यं भरी अं यिनीओ ॥श्या पहेलो वासुदेव थासे, चक्रवर्त्ति भूझ नेवासे ॥ थवीश भोश्जेतीर्थऽश, वर्ध्यमान नाभेन यं शा१॥ सस्युं लरतनुं हीयुं, न भरीश्नंयने ऽधुं ॥ तातें पहवीने हाजी, हरिभक्ति निन पहलाषी॥ मात्रएय पर रक्षा हेर्छ, वंदन विधिशुं कुरेछ। स्तवतोऽरेखेभन हाड़ो, पुत्र त्रिदंडीनराहो ॥१८॥वादुछु नेहु भरम, थासो निनपति - पेश्माश्मि उही पाछोचतीजो, गरवें मरीजंथी यडीसी ॥१॥ ढास जीलार्धजागडुसें कुंडीपनी, भारो चक्रवर्त्तितातलघ हो माहारो निनहुनो, हुपए। त्रिनग विज्यातला शाही जड़ो बीस भडस माहुरी, अहो जड़ो भुन अवतारलाानीय गोत्र तिहां जाघीणीं, लूखो ब्लूश्जो उरम प्रशारक ॥श्ननाशाश्चालरतें पोतनं पूरें, त्रिपृष्टह रिश्जलिरामला महाविदेह क्षेत्र भूडापुरी, शक्ति प्रिय मित्र नाभला ॥जनाआ परमतीर्थऽर थायशुं, होसे त्रिगडुं सारला सुरनर सेवा सारसें, धन्य धन्य भुन अवतार ॥जगाना रहे मह भातो जेएसीप रें, खेड हिन रोग जतीवन्ला भुनिन्न सारडोनवि उरे, सुजवांछेनिन लवलाश्नणापाऽपीस नाभेोर्घखावीरजी, प्रतिजोध्यो निन वाणीला साधुसमीपे दीक्षा वशे, घरम छेतेो मन्त्रजनाशासा घुसमीपे भोउले, नवीन्नश्येते सन्मेगन्नाा चिंते भरीजंय निन भने, ही सेछे भुन लेगकामनाशा नवने वसतुंजोलीयो, तुभवांहे होयल लोलो घरम हांसछे, पीत्सूत्र लांज्युं सोयलाजिनायातेो संसा www.jainelibrary.org Ja Educationa International For Personal and Private Use Only
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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