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गरन्लवित त्यांहि, शुलवीर सहा सुज मांहि ॥१३॥ ॥ति॥रा
ढासत्रीलायोपार्धनी देशी । पथिमे लवें डोल्सागनीबेस, वि षयासक्ति ज्ञाह्मएाचेसााग्जेंशी साज पूरखग्ननुसरी, त्रिदंडी जाने चे शें मरी॥षा अस जहु लमीयो संसार, युएणापुरी छढो जवतांराज होतेर लाज पूरवने श्याय, वित्र त्रिदंडी वेश घरायाशासौधर्मे मध्य स्थितियें थयो, ग्नाहमे चैत्य निवेशें गयो।ग्जग्निद्योत दिन त्रिदंडी जो पूर्वजायु सजसाठे भूग्जो ॥आभध्य स्थितियें सुर सर्ग घेशान, घ्शमे मंहिरपुर द्विनडाए । लाज छपन्न पूरवापुरी, अग्निलूति त्रिघ्डीङ भरी। नात्रीने सरणमध्यायु घरी, जारमें लवस्वेतंजी पूरीपूरवसाज सुभासीशनाय, लारद्दिन त्रिदंडी यायाचा तेरभे शीथेस गैरमी, डास घएगो संसारे लभी ॥ विषी हमे लव रानगृहीन्नय, धोत्री शसाज पूखने जायायावर विम त्रिहंडीथयो, पांयमेस्वर्गभ रीने गयो।शोसमें लव डोड वरस सभाय, रानकुभर विश्वलूतियाय जासंभूति मुनि पासें जएगार, दुर तप उरीवरस हुन्नाभास जभएा पारएा घरी घ्या, मथुरामांगो परीये गया। गाये हुएयामुनि पडिया घस्या, वैशाज नंही पितरीया हस्या ॥ णी श्रृंगे भुनिगर्वेऽ री, गया पीछानी घरती घरी जातप जसथी होन्ने जल घएगी, उरी नीयाएर मुनि जएएसएगी ॥सत्तर में महाशुकें सुरा, श्रीशुलवीर स त्तरसागरापणार्धति
ढास पोथी नही यमुनाडे तीर डीडे होय पंजीयां ॥ जेहेन शीताञ्जढारमे लवें सात, सुपन सूथित सती॥पोतन पुरीयें अन्नपति राशी भृगावतीतस सुत नामे त्रिपृष्ट, वासुदेव नीपनापिाप घड रीसातमी, नरहें पीपना ॥१॥वीशमें लवधर्छ सिंह, योथी नरडें गया
तिहांथी न्यवी संसारे, लव जहुसा थया । जावीशमे नरलय सही, पुएय घ्शा वरयात्रेवीशभे राज्यध्यानी, भूडीये संयस्या शाराय घनंन्य धारएणी, राएगीयें नग्नभिया । लाज योरासी पूरव जायुवि
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