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( ૨. )
॥ अथ सीमंधर ग्नि चैत्यवंदन ॥ ॥ श्रीसीमंधर नगघेएगी, खा भरतें खाचो ।। एलावंत ऊईला उरी, हमने चंहावो ॥ सम्स लज्त तुभो घेएगी, ले होवे जमनाथा लबोलव हुं हुं ताहरो, नहीं भेतुं हवे साथ ॥शा सयल संग छंडीङमेरी, चारित्र वर्धा पाय तुभारा सेविने, शिव रभएगी सजा जेसले भुन्ग्नेघोने, पूरी सीमंधर देव ।। हां थडी हुंबीनपुं अवधारो भुञ सेवान्ना पार्धति॥आ
॥ जय सीमंधर न्नि चैत्यवंदन ॥
॥ चंदु ग्निवर बिहर भान, सीमंधर स्वामी ॥ डेवल उमला अंत हांत, उरैएारस घामी ॥शाम्यनगिरि सम हेह अंत, वृषखांछन पा यायीराशी सज पूर्व आाय, सेवित सुररायाशा छठ्ठलत्त संयमती योग्जे, पुंडरिणिएगी लाए । प्रलुद्यो हरिसएा संपा,डारए। परम उल्याए। ।। आ पर्छति॥ना
॥ जय नेमिनाथ चैत्यवंघ्न ॥
॥ जनभो विश्वनाथाथ, जन्मतो व्ययारिएो । उर्भवल्ली वनश्छेह, नभयेऽरिष्टनेमये ॥ थायदुवंशसमुद्रदु, उर्मम्क्षहुताश नत्राजरिष्टनेभिर्लगवान्, लूयाहोड रिष्टनाशनः शासनं तपरमानंह, पूधाम व्यवस्थितः ॥ लवंतं लवता साक्षी, प श्यतीह निनो जिल॥आस्तुवंत स्ताव जिंज, मन्यथा उथमीरशा मोहातिशयश्वित्ते, मयते लुवनातिना पतिप
॥ अथ ऋषलग्नि चैत्यवंदन ॥
॥ न्यन्ग्यनालि नरिह नंह, सिध्यायेस मंडए। ॥न्यन्यम भनिएहिउंह, लवदुःज बिहंडए। ॥शान्ग्य न्य सांषु सुरिंदरंध, ||हिन परमेसशान्य लय एगहानंद मुंह, श्रीऋषल निनेसराश।
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