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________________ ( २२८ ) हिलसें लावेरे ॥त्रएाशें त्रीश उल्याएाड से हिन, त्रीश पोवीशीनाथा - वेरेशाश्रीगानापहेतां पांथनिएहनभिनेभि,सुव्रत पास सुपासरेशा शनिग्नना नगीनार उत्याएाङ, मे हिवसें थयाजासरे॥श्रीगा पान सिष्धिषुध्धिघयड को हिनें, स्तवन रथ्यं प्रभागोशाला शेगएराशेनेडुसाललशे, तस घर डोडि छुट्याएंगोरे ॥ श्रीगाला सशाभिवीर ग्निवर, प्रभुजदेशं, जढी पाजीहार मे निग्नजिंज थापी, सुन्ग्स सीधो, धनसूरि सुज आरजे तस पाट परंप र तपागच्छे, सौलाग्य सूरि गए।धार जेनिस शिष्य लक्ष्मी सूरि पलएणे, संघने न्ग्यअरजेश ति ॥ अथ श्री महावीर स्वामीना पांथ उत्याशिडनो ॥ स्तवन प्रारंभः ॥ ढास पहेली ॥ प्रलु पित्त घरीने अवधारो भुन वाताखेदेशी ॥ ॥ सरसति भगवती हीजोभति भंगी, सुरस सुरंगी चातुप साय भायचित्तधरीने, न्निशुए। रयएानी जाएशा शागिरैयागुएावीरलगा पसुंत्रिभुवनरायात्सनाभे घर भंगल भासा, तसघर जहुसुनथाय॥ शिश्यानाशा ने जांएगी छगनंजुद्दीप लरत क्षेत्रमांहे, नयर माहुएाडुंडा श्राभाऋिषलघ्त वर विश् वसे तिहां, हेवानंदा तस प्रियानाभागिरैरनागाश सुरविभान कर पुष्पोत्तरथी, पवि प्रलुसीये भवताशातवते माही रयएगी। मध्ये, सुपन सहे घ्स पारा गिरेखागाआ धुरें भयगल भसपंती हेजे, जीने वृषल विशासात्रीने डेशरी पोथे लक्ष्मी, पश्चिमे उसुभनी भासा गिरेमा पनाह सूरत ध्वसश पहभसर, हेजे की हेव विभानाश्यएरेलर यगायर राजे, पौहमें अग्नि प्रधानागिरैसागापाखानंहलरलगी सासुंदरी, उतने उहे परलात । सुगीय विभउहे तुभसुत होसे, त्रिलुव नभांहें विज्याताागिश्खाणाशासति जलिमानडीयो भरीय लवें, Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibra org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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