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________________ ( २२९ होडेभऊरायासाणाआ शत्रुंनय माहात्म्यमां उयुं, भुनिवेषने नभवोषी छाहिंगासानासिंग हेजीने लायें प्रएाभीया, शचीव वीध्यनशुए। श्रहिं सानामात्नरतने डेक्स बीपने, सिंगचिएा नभीया नहिं हेवा साना उद्दे नीपदेश से संबंघनो, जशुय्या डेवलीततजेवणासागापाज्ञाननुं इस विरति उयुं, जहुविध शास्त्र भन्नशासानाचारित्र महारान्न तगा, ज्ञान समति हो प्रतिहार ॥ सानागतियारमां समस्तिपाभीयें, नर गनिमांहें संयम सिध्यासाणाडिरिया नय शासन संग छे, निर्युस्तिनां वयन प्रसिध्यसागाजा सरव संवर डिरिया बिना, ज्ञानीने मुक्ति न होय सामाजनंतर आरए। हुंसही, तेह इस्सी सिध्यासहुडोयासानाना ढालछडी॥ शन्निवर मंदिर सयल महियलमां, सोवन रयए भंडाचेन्जेि वसना चरए। सभोवऽ,ऽहोते डेभङरी यावेळ आशा साहरन्तवक्रियाशु एा मनोहर, म उरीशवाह विवाहकाने नांएगी। डेवलने पए। जेडस यमनुं, थाना थिर रहे शुष्यलासिस प्रदेश थिरता उपचारित्र, सिध्य प्रलुनेम्हे बुध्यन्नानागाशाश्नेश्वरसना संयम सुजमां, जनुत्तरसुरसुज पावेन्ला जे पएाव्यवहारिङ नय वर्धन छे, क्षएामांहें श्रेणीमं डावेळ भागाआरजे हिवसनी डिरिया पालङ, संप्रति नरपति डीघो लारुरिनृपने नवयाम क्रियायें, पंचम अनुत्तर सिध्धोलाखानान जार उपाय भटे संयम होथे, डिरियायें महासन्धि नाघ्शार सिंहसत्य डीने अधोगति, न्येनहीं डिरिया संबंधिका नागापानक्रिया चाहि शानूमां, दृष्षा पंजीयोळव नियमालाकियावाहिशुस पजिजो, निजीपहेशे भहिमालखाणासायोग व्यापार नहींले सिध्धने, तोि रिया भिव्यापेलासघसा नयनो सार संयम छे, निनगए।घर उछृंख पेलाजागाजाजर निभचंदन लारवहे जहुतस सलोगनथावेला हीपम् सहस ग्रह्या पएासंघथी, हुए|ार्य सोहावेळा खाना नाघ्शाए लहने नमियासुरपति,न्ने डिरियायें गुएावंताला भुन वहात अने www.jainelibrary.org Ja Educationa International For Personal and Private Use Only
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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