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C. १७७ >:
॥ जय श्री भस्सि ग्निस्तवन
सासू पूछे हे बहुत ने देशी ।। महिमा भस्सि निएİहनो, ने डेंललें उह्यो भिन्नया योग घरे लिन्नयोगभुं, याला पए योगना हेजायामिनाशाक्य सभळाचे सला, मन समळावे अनुत्तर हेवरा जौहारिङ डाया प्रत्यें, हेव समीपेंदराचे सेव ॥भगाशालाषा पास विश्रोताने, निन निग्लाषायें समझाया। हरजे निन् निनरीञमां, प्र लुतो निरविद्वार उहाय ॥मनाआयोग अवस्था निन्नती, ज्ञाताहुये तिएंगे समझायाचितुरनी बात 'चतुर सड़े, भूढ जियारा हेजी मुं आया मनाचा मूरजन्ग्न पामे नहि, प्रलुगुएानो अनुभव रस स्वा भानविन्य जीवण्डायने, ते रस स्वाहे गयो विजवाद्यामिनाचा
॥ जय श्री मुनिसुव्रत निस्तवन ॥
डर सांजा भांजी रे ॥ने देशी ॥ मुनि सुव्रतडीनें भयारे, भनमांहि घरी महेशा महेर विहूएगा मानवी रे, उहिए। न्यायेउद्देशा शान्एिोसर तुंन्ग्गनाथम् हेव ।। तुळ नगहित हुखा देव,जीलब्लूये आता सेवानिवारजे मांडणी ॥ नरहट क्षेत्रनी लूभिडारे, सीं ये मृतारथ होय ॥घाराघर सघसी घराशीघ्घरवा सन्न लेयरिं निगाते भाटे अभी परेरे, जांएगी मनमां महेशाखापें नायना एीिरे,जोधवा लश्यय सहेशआनिनान्जए। प्रारथता पीघ्घश्यारे, ग्जापेंडीय डीपाया प्रारथता रहे विसवतारे, जे मुंएराम्हीयें न्याया नान्निसंबंध पातु भुञ वियेरे, स्वामी सेवड लाव॥भान म्हे हुवे महेरनी रे, न रह्यो जन्ग्य प्रस्तावापानि छति॥२०
॥ अथ श्रीनभिन्नि स्तवन ॥ ॥म्पूर होने श्अति जीन्सोरेशने देशी ॥ श्री नभिनाथनिएहने रे, परए। उभल लय लाय ॥ भूडी मापणी चपलता रे, तुछ कुसुमेभ
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