________________
( १८४ )
भश्य, हूं पए। जरथी तेहुनो।। यित्त वित्तने पात्र संबंधे, जन्ररह्योह वेडे हुनोसणा मलुनी महेरे ते रस थाज्यो, जंतरंग सुज पाभ्यो । मानविग्य वाय मन्पे, जो भुन भन अभ्यो । जामना
र
॥ अथ श्रीसंलवग्निस्तवन ॥ ॥ सुभति सहा हिसमें घरो ।। जे देशी । साहिज सांलसचीनति तूंछे चतुर सुन्नए। सनेहाङीधि सुन्नएगने विनती, प्रायेन्यदेते प्रभा एसगाशा संलवन्नि नवधारीयें, महेर उरी मेहेरजाना सगाल चलय लावलंएगो, लस्तिवछष लगवान ॥ सनाशासंगातुन्नऐ विष्णुं विनवे, तोहे में न रहायासनाजरथी होग्ने छीतावलो, क्षएावर सांसो यायासनाआसंगा तूंतो मोटिभमां रहे, विनव्यो पए। विसं जायासनाने धीरो जेड जाउलो, हम हिम डारन्यायासनाचा संगाभन भान्यानी चातडी, सघसे हीसे नेवासना रजेनंतर पेशीर हे, भेडन पाभेलेटासनाचा संगायोग्य अयोग्यनेन्नेर्धवा, तेज पूरानुं प्रभासणा जार्धना नसने पए। उरे, गंगा निन नसनाभा सगाशासंगाडालगयो जहुवायहे, तेतो हुवे न जमायासनायो गवार्ध को डिरि झिरी, पामवि दुर्लल थायासनाजासंगालेहलाव मूडी परो, भुञशुं रमी खेड भेआसना भान विनय चाय तशी, जे पीनति छे छेशा सणान्यासंगा पर्छति॥आ
॥ अथ श्रीमलिनंघ्नग्निस्तवन ॥ ॥ढासा भोतीडानी देशी ॥ प्रलु भुण्ड हरिसन भनियो ग्नलवे, नथयुं हुवे हलवे हलवे ॥ साहिया मलिनंदन हेवा, भोहेना अलिनंद नगा पुएयोध्य मेहु मोटो माहुरो, जएायित्यो थयो हरिसएरा नाह सानाहेजत हेव हरीभन सीधुं, अभएागारे अभए। डीघुसानाभ नडूं नये नही डोधेपासें, रात हिवस रहे ताहरी जासें ॥शासाना पहि
Jan Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.