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॥ ग्जथ बीपाध्याय श्री भानविन्ग्यलकृत ॥ ॥ चतुर्विंशति न्नि स्तवनानि ॥
॥ तत्र ॥
॥ प्रथम श्री ऋषत्ल हेवन्नि स्तवन ॥ ॥ राग मेलाती ॥ ऋरषलनिएांध ऋषलनिएगंध, तुम हरिसए हुवे परभाषांघा अहुनिशि शालीं तुम हीहारा, भहिरहुरीने डरले प्याशाशाऋणानापानी पुढे ने वलगा, डिभ सरे तेहने पुश्तां जलगा ।। नलगाडीघा पड़ा रहे चसगा, भोर पीछ परे नहुने बीलगा॥शाऋणा तुम्ह पए। जसगे थयें हिभ सरशे, लम्ति लसिनाम्र्षी पेशे ॥ गगने ीडे दूरे पडाई, होरी जसे हाथे रहे खाई ॥ आऋणामुळे मनडुंछे चपस स्वलायें, तोड़े अंतरभुहूर्त्त प्रस्तावे ॥ तूं तो समय समय जहसाये, भ डिभ प्रीति निवाहो थाये ॥ चाऋणाने भाटे तूं साहिन माहारो, डुं छु सेवड लवलव ताहुरी ।। खेह संबंधमां महोन्ने जामी, वाधम्मान उ हे शिर नाभी ।। ऋषलणा छति॥राशा
॥ अथ श्री जन्तिन्निस्तवन ॥
॥खाद्या जाम पधारो शन्ना ने देशी ॥ जन्ति निएरोसर पर - एानी सेवा, हेवाये हुं हुसिनो ।। उहिग्ने भएायाज्यो पाश्ननुलव, रस नोरागो भतिजो ॥शा प्रतुल महीर उरीने जान, डान हमारांसारोप भुडाग्यो पएाहुंनवि भुजं, युद्धं जे नवि एगो । लङितलाव बीड्योन्नेनं तर, ते डिम रहे शरभाएगो ||शा मनासोधनशांति सुधारस सुलगा, भु जभरडालुं सुप्रसन्नायोगमुनो सटडी परडो, जतिशयनो अति धन्न आपणापिंड पहस्थ उपस्थे सीनो, परएाङभस तुग्रहीयांग लभरपरें रसस्वादृयजावो, विरसुंडां रो महीयां ॥ नापगाजास प्रसभांचारश्ननंती, सामग्रीये हुं नवि लग्यो । यौवनासेंतेरसया ज्यो, तूं, समरथ प्रलु भाथ्योगातूंननुलवरसहेवास
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