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________________ तेहंघाभनपंछित पूरे,संस्टयूरेग्निपतिजारावधाहालैरवन विराला,तेमभावा,अंजासेवघागिरिनारगासारख एछप्पयानावे निर्मललावलावपालवन्ततागामे गिरिवर मुंनाभ,उष्ट सजपूर निवारेगनेभीचर निरघार,सारजे तीरथनएसभवसश्या सुपिथार,नत्यातिभबहुताभाएगीसंघसस सजशना,भावे गिरियात्रान्मएरोयन्नेडिग्निपिनवे तुमनभोरैवतगिरिघडीमा प्रतिसाणा .. । . . ॥जयश्रीग्निसहस्रनाभवन ॥ ॥लुगप्रयात वृत्तान्गन्नाथ गद्दीशगजघुनेता,यिध नहायिलंडयिन्मूर्तियेतामहामोहलेही जमायीजवेदी,तथाग ततथा-पलवलयरछेदीपानिरातं निडराऊ निर्भपनजंघो, प्रलोडीनजंघोपानीरसिंघोासघातन सघशिवसघशुध्यस्था भी पुरातन पुषपुरषवर वृषलगाभीशाप्रति रहित हितवयन नभायाजतीत,महाप्राज्ञ भुनियज्ञपुरीष प्रतीतासितउर्भलर उभइससिध्यिघताहघ्यपूत जबघूतनूतन पिघातामहान ज्ञानयोगीमहात्माजयोगी,भाधर्मसंन्यासयर पछिलोगी। महाध्यानबीनोसभुजमुधे,महाशांतमतिमंत भानसमश्चे नाभहेंटित सेवघचाघिव,नभोतेअनाहुत्त यरा नित्यमेव एनमो धर्शनातीतर्शनसमूह,त्रयीगीतवेहांतहत मजिसहिप पावयन मनमगोयरमहावाष्यवृत्ते,त्तायसंवेद्यपहसुप्ररा तासभापत्तिमापत्ति संपत्तिलेटी सउखपाप गरीठ तुंघीछेधार नागरगमात्र प्रतिवेवाघसभापत्तितुन्दृष्टि सिध्यांतवाघोप चिणूता विनामनुलपिससवारी खजीमेऽसिध्यांतघरमप्र भागामारी घयितालोणसुजन्म नन्नोऽतथाध्यान पिए तुम् भुघाखोऽत्ताएगाडरीष्ट तुमारो बहुतजोल स्वयंतुंभ - The Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.in
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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