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२८ श्रीहरिजनसूरिकृतान्यष्टकानि । केतां जेमां मोदनो मार्ग जणावेलो ने एवं, अथवा मोदनां मार्गरूप, तथा “ परंज्योतिः" केतां महामोहरूपी अंधकारना समूहने दूर करनार एवा असाधारण प्रदीप समान शास्त्र जेणे रचेखें , ते “महादेव" कहेवाय; वली ते शास्त्र केतुं तो के, " त्रिकोटीदोषवर्जितं" केतां शास्त्रोनां आदि, मध्य अने अंतना नागमा आवता जे पूर्वापर विरोध आदिक दोषो, तेणे करीने रहित एवं; अथवा शास्त्ररूपी सोनानी कष, वेद अने तापरूप जे परीक्षा, तेमां आवता दोषोयें करीने रहित, एवं शास्त्र जेणे रचेलु , ते " महादेव" कहेवाय.
अहीं " सवृत्ते करीने युक्त ” एवं जे महादेवनुं विशेषण आप्यु , तेथी कामीपणां आदिक अनुचित अनुष्ठानवाला देवोना महादेवपणानो निषेध कह्यो, केम के, रागादिकथी उत्पन्न श्राय,एवी असमंजस चेष्टा जेनी होय,तेउने पण महादेवपणामां जो लेखीए, तो तेवु महादेवपणुं तो सर्व प्राणीमां प्राप्त अश् शके !!! कडं ने के,
कामानुषक्तस्य रिपुप्रहारिणः, प्रपंचिनोऽनुग्रहशापकारिणः ॥ सामान्यपुंवर्गसमानधर्मिणो, .
महत्वक्लप्तौ सकलस्य तद्भवेत् ॥ १॥ अर्थ-काममां आसक्त, शत्रुने मारनार, प्रपंच करनार, प्रीति राखनार, तथा श्राप आपनार, एवा सामान्य माणस सरखा गुगोवालानी पण जो महादेवपणामां कल्पना करीएं, तो तेवं महादेवपणुं तो सघलाने प्राप्त थाय. __ वली “ शास्त्रमुदाहृतं” ( शास्त्रकहेढुंचे) एम कहीने, जेठ शास्त्रने मनुष्यनी कृतिविनानुं माने , तेजेनां मतनुं खंडन कर्यु बे.
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