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प्रथमाष्टक.
ष अने महामोहवडे करीने, जेर्नु मन परानव पामेलु नथी, एवा पुरुषनां महिमानी कोण बरोबरी करी शके तेम ?)
एवी रीते उत्तम गुणोनां समूहरूप मणिउने उत्पन्न करवामा समुष सरखा “ महादेव” बुद्धिवानोने स्तुति करवा लायक ; अने महादेवनुं खरं स्वरूप जाणवावाला माणसो तो तेनेज "महादेव" कहे जे; पण जेनुं पराक्रम राग आदिक शत्रउँथी हपाएलुंजे, तेने “महादेव" कहेता नथी.
वली अहीं वादी शंका करे ने के, सघला प्राणीमां राग तो होय बेज,माटे (कोश्ने पण) सर्वथा तेनो अनाव संजवेज नहीं.
त्यारे वादीने हवे प्रत्युत्तर आपे के, एम नहीं. जो के, सघला प्राणीउने रागषेषनो अनाव नथी श्रतो, तोपण अमुक प्राणीउने तेनो अनाव थाय पण , माटे एवी रीते तारी शंकामां व्यभिचार दोष आव्यो. केम के, आपणने पोताने पण कोश् अप्रिय वस्तुमां ज्यारे रागनो अनाव मालुम पडे ने, तो ते दृष्टांतथी अनुमान करी लेवु के, एवो पण कोश् माणस होवो जोएं के, जेने तमाम वस्तुपर बिलकुल रागनो अजाक्ज होय; अने तेम कहेवामां कई विरोध आवतो नथी. केम के, कडुं ने के,
दृष्टो रागाद्यभावस्तु, क्वचिदर्थे यथात्मनः ॥ तथा सर्वत्र कस्यापि, तद्भावे नास्ति बाधकम् ॥१॥
(अर्थ-जेम को कोई कार्यमां आपणने पोताने पण (अनिष्ट वस्तु आदिकपर) रागनो अनाव देखाय बे, तेम कोइ माएसने सघली वस्तुपर पण रागनो अनाव होय, (एम मानवामां) कंई बाधा नथी.)
वली वरसादनी श्रेणि आदिकनी पेठे, पुजलिक जावो जेम थोडा, वधारे, अने तेथी पण वधारे नाश थता देखाय , तेम श्रा राग आदिको ज्यारे थोडा नाश थता देखाय , त्यारे ते
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