SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६० श्री हरिजप्रसूरिकृतान्यष्टकानि । इत्थं जन्मैव दोषोऽत्र, न शास्त्राद्बाह्यजणम् ॥ प्रतीत्यैषनिषेधश्च, न्याय्यो वाक्यांतराद्गतेः ॥५४॥ अर्थ एवी रीते, अहीं जन्म थवो, तेज दूषण बे; वली बीजा वाक्यनी प्राप्तिथी, शास्त्रश्री बहारनामक्षणने श्रश्रीने श्र प्रतिषेध कंई न्यायवालो कहेलो नथी. टी कानो जावार्थ एवी रीते मांसमक्षणमां जक्षण करनारने, ते मांसनो स्वामी क्षण करशे, छाने तेथी तेने पुनर्जन्म लेवो पडशे; तेज दूषण उत्पन्न श्रयुं; बीजुं दूषण शोधवानी शी जरूर बे ? माटे हे वादी ! ! तारे शा माटे कहेतुं जोइयें के, " मांसनजमां दूषण नथी. " त्यारे वादी कहे के, एवी रीते मांसजमां दूषण नथी; केमके मांसभक्षणनो निषेध अने तेथी तुं पुनर्जन्मनुं दूषण तो, आगममां कह्या शिवाय बीजा मांसना क्षण माटे बे; पण शास्त्रनी विधिपूर्वक मांसमक्षणमां दोष नथी; केमके, तेने माटे " प्रोक्षितं जयेन्मांसं " इत्यादि शाखोनुं वाक्य . हवे ते शास्त्रनुं वाक्य वादी कहे बे. प्रोक्षितं जयेन्मांसं, ब्राह्मणानां च काम्यया ॥ यथाविधि नियुक्तस्तु, प्राणानामेववात्यये ॥ ६ ॥ अर्थ - वेदना मंत्रथी पवित्र करेलुं मांस, विधिपूर्वक ब्राह्मयोनी अनुज्ञाथी, अथवा जीव जतो होय, ते वखते खावुं. टीकानो जावार्थ - " प्रोक्षित" एटले वेदना मंत्रोथी पवित्र करेलुं एवं मांस, ब्राह्मणो खाइ रह्या बाद, तेर्जनी अनुज्ञाथी, यज्ञ, श्रा ने परोणा श्रादिकनी विधिपूर्वक खावुं; यज्ञविधि एटपशुमेध अश्वमेध आदिक जाणवो. वली श्राद्धनो विद्धि श्राशास्त्रमां नीचेप्रमाणे को बे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy