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________________ सप्तदशमाष्टक. १५७ अथवा पुरुषांतरनी अपेक्षाथी घटी शकशे नहीं. वली पण तेज बाबतनुं अयोग्यपणुं कहे बे. वली एम मानवाथी तो केवल साधुनुं मांस खावं, एटलुज नहीं, पण हाडकां, शिंगडां, खरी श्रादिक प्राणीनां अंगो पण खावां जोश्शे; केमके, मांस अने हाडकां आदिकमां प्राणीअंगपणुं तो सरखंज जे; माटे एवी रीते श्रनदयने नदयपणुं कहेवाथी ते हेतु विरुष्तावालो के. वली एमां बीजुं दूषण पण हवे कहे . एतावन्मात्रसाम्येन, प्रवृत्तिर्यदि चेष्यते ॥ जायायां खजनन्यां च,स्त्रीत्वात्तुष्यैव सास्तु ते॥६॥ अर्थ- (हे वादी !!!) वली प्राणीना अंगपणाना सरखापपाथी जो तुं प्रवृत्ति करीश, तो स्त्रीपणाना हेतुथी स्त्री श्रने मातामां पण तारे (नोगविलास अने पूज्यपणानी) सरखी प्रवृत्ति करवी पडशे. टीकानो नावार्थ- (उपरना श्लोकना अर्थने मखतोज ने. हवे प्रकरणना अर्थनो निश्चय करवा माटे कहे . तस्मालास्त्रं च लोकं च, समाश्रित्य वदेद् बुधः ॥ सर्वत्रैवं बुधत्वं स्या, दन्यथोन्मत्ततुल्यता ॥७॥ अर्थ- तेथी शास्त्र अने खोकने आश्रीने पंडित सर्व बाबतमां बोखवू; अने तेथी तेनी पंडिताइ थाय , अने तेथी उलटी रीते बोलवाथी उन्मत्तपणानी तुल्यता थाय . . टीकानो नावार्थ- हे वादी !!! उपर कहेला न्यायथी तारूं कहेलु साधन बहु दोषणवालुं बे, माटे श्राप्तना वचनने, अने उत्तम एवा खोकने आश्रीने पंडिते सर्व विषयोमा बोलवू जोश्ये, अने तेथी पंडिता कहेवाय; अने तेथी उलटी रीते बोलवाथी उन्मत्तपणानी तुट्यता थाय . कडुं ने के, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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