SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६६) पढी प्रजाते शेठ जाग्रत थइने तथा नित्य नियम करीने मारी पासे श्राव्यो, तथा पोतानुं स्वप्न - मोने तेथे कही संजलान्युं पढी श्रमो पण राजा श्रादिक परिवार सहित ते यज्ञस्थानके गया. ते वखते यज्ञनी सघली तैयारीउं चाली रही हती. केटलाक ब्राह्मणो ते घोमाने उष्ण जलथी नवराववा लाग्या; पढी ते ए तेना मस्तकमां सिंदूरनुं तिलक कर्यु; तथा तेना पर लीला रंगनुं रेशमी कपडुं श्राछादन कर. एक ब्राह्मणे लाल रेशमी कपडाथी तेनी खो पर पट्टबंध की धो. अग्निकुंडमां चंदन, धूप, मध, घी विगेरे नाखतो तथा मुखथी वेदपाठ तो को निशर्मा पण एक पाटला पर अग्निकुंडनी जमणी बाजुए बेठेलो इतो, ते वखते श्रमारी श्राज्ञाथी मारी साथेना एक साधुए अग्निशर्मानी सामे जोश्ने तेने कयुं के हे अग्निशर्मा ! वी रीतनी हिंसा करीने तुं नरकमां जवानी केम इछा करे बे ? ते सांजली अग्निशर्माने अत्यंत क्रोध चड्यो, अने तेणे ब्राह्मणोने हुकम कस्यो के या जैन साधुर्जने मंरुप बहार काढी मेलो. ते सांजलतांज घोकाए पोतानुं नरसिंहनुं जयंकर रूप For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003684
Book TitleSamudrik Shastranu Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1914
Total Pages226
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy