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________________ ( ३२ ) वली जे स्त्रीना हाथ लांबा होय, ते दरिद्री होय, तथा जेपीना हाथ टुंका होय, ते गुणोथी हीन होय; वली जे स्त्रीना होठ काला होय, ते स्त्री पतिरहित थाय; वली जे स्त्रीना गाल कूवा जेवा जंमा होय, ते स्त्री बहुज गुस्सावाली थाय, तथा ते परपुरुष साथै प्रेममां पने; वली जे स्त्रीना गाल उंचा अने जाया होय, ते स्त्री पतिने दगाथी मारे, थाने पर पुरुष साथै प्रेममां पडे; जे स्त्रीना दांत होनी बहार नीकलेला होय, ते स्त्री अंते विधवा थाय; जे स्त्रीनी नासिका वांकी होय, ते स्त्री नरतारने बिलकुल बहाली लागती नथी; वली जे खीनी नासिका नानकडी छाने चीपटी होय, ते स्त्री तुरत विधवा थाय बे, तथा पर पुरुषनी साथे चाले बे; वली जे स्त्रीनी जीन श्याम रंगनी होय, ते शंखणी कहेवाय, तथा जेणीनी जीन श्वेत रंगनी होय, ते दासी याय; वली जे स्त्रीनुं तालबुं श्याम रंगनुं होय, ते ज़रतारने कष्टकारी थाय; जे स्त्रीनी आंखो पीला रंगनी होय, ते महापापिष्ठ होय; वली जे स्त्री शरीरमां तमाम पातली होय, ते जर्त्ताने दुःखदायी थाय, अने तेने पति साथै बने नहि; जे स्त्रीनी जमर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003684
Book TitleSamudrik Shastranu Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1914
Total Pages226
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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