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________________ ( १६५ ) श्रादिक देवानो प्रारंज कर्यो. वली पशु पक्षी माटे पण घास चारा जल विगेरेनी सामग्री तैयार करावी. वली पण राजाए मतिसागरनी सलाह मुजब जिनमंदिरमां अष्टाह्निक (अाइ ) महोत्सव कराव्यो, तथा जावपूर्वक श्री वीतराग प्रजुनी पूजा करी. एवी रीते शुज मार्गे द्रव्य खरचतां थकां बे वर्षो वीती गयां. एटलामां तेज नगरमां जिनसेन नामे ज्ञानी - चार्य विहारक्रमथी पृथ्वीने पावन करतां थका पधार्या श्राचार्य महाराजे नगरनी बहार कदलीवनमां मुकाम कर्यो. तेमने वांदवा माटे नगरनां लोको त्यां गया, मेघवाहन राजा तथा मृगावती राणी पण रथमां बेसीने परिवार सहित त्यां गयां, तथा सर्व लोको पोतपोताने उचित स्थानके बेसी गया. पी जिनसेन महाराजे पण गंभीर ध्वनिधी देशना दीधी के हे जव्यप्राणी ! या मनुष्यजव पामीने जे प्राणी विषयोनी लोलताथी स्वार्थमांज रक्त रहीने परोपकार करता नथी, ते प्राणी जवांतरमा सुख मेलवी शकता नथी. एवी रीतनी श्राचार्य महाराजनी देशना सांजलीने सर्व लोको पोतपोताने For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003684
Book TitleSamudrik Shastranu Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1914
Total Pages226
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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