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(६४) नट नागरसूं जोरी सखी हम,
और सबनसों तोरी होगम लोक लाजसू नांदी न काज, कुल मरयादा गेरी दो॥ लोक बटान दसो बिरानो, अपनो कदत नकोरी होमणश मात तात अरु सजन जाति, वात करत है नोरी दो॥ चाखे रसकी क्युं करी बूटे, सुरिजन सुरिजन टोरी हो
॥म ॥३॥
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