________________
(8) उसका क्या मोला।निशाशा पंथ निहारत लोयणे, जग लागी अडोला ॥ जोगी सुरत समाधिमैं, मुनिध्यान ककोलानिश॥३॥ कौन सुनै किनकुं कहूं, किम मांडं में खोला ॥ तेरे मुख दीठे टले, मेरेमनका चोलानिश॥४॥ मित्त विवेक वातें कर्दै, सुमता सुनि बोला ॥
Jain Educationa Interati@easonal and Private Usev@mw.jainelibrary.org