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(३५४) सोहावत हे। मंदर धीर सवेन रहीर सुसाम शरीर बिराजित हे। कजालवान सुकउपयान करे गुणगान नरिंद घणो । मुनिसुव्रत स्वामी तणो अनिधान लहे नय मान आनंद घणो॥२०॥ अरिहंत सरूप अनोपम रूप के सेवक फुःखने दूर करे । निज वाणी सुधारस मेघ जले नवि मान समानस नूरि रे । नमिनाथको दर्शन सार लही कुण विष्णु महेस घरे जो परे॥ अब मानव मूढ लही कुण सकर गेमके कंकर हाथ धरे॥२१॥ जादव वंश विनूषण साहिब नेमि जिणंद महानंदकारी । समुजविजय नरिंदं तणो सुत उजाल शंख सुलक्षण धारी॥ राजुल नार मूकी निरधार गये गिरनार कलेस निवारी। कजाल काय शिवादेवी माय
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