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(३१७) मुःखदायी होसद् कर्म विनाश॥
परमा०॥६॥ कर्मकलंक निवारीने, निज रूपें दो रमे रमता राम॥ खदत अपूरव नावथी, इण रीतें हो तुम पद विश्राम ॥
परमा० ॥७॥ त्रिकरण जोगें वीन, सुखदायी दो शिवादेवी नंद ॥ चिदानंद मनमें सदा,
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