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(३१७) सेवकनी दो करती संभाल ॥
परमा० ॥४॥ मोद गयां जो तारशो, तिणवेला दो कदा तुम उपकार॥ सुखवेला सजन घणा, छुःखवेला दो विरसा ससार ॥
परमा०॥५॥ पण तुम दरिसन जोगयी, थयोहृदयें होअनुन्नवपरकाश। अनुभव अभ्यासी करे,
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