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(२०) सहज सुनावमें सुमन निपजा
ईयें ॥ अजि० ॥३॥ ध्यान धूप झान दीप, करी अष्ट कर्म जीप ॥ उविध सरूप तप, नैवेद्य चढाईये।अजि ॥४॥ लीजीयें अमल दल, ढोईये सरस फल । अदत अखंड बोध, स्वस्तिकलखाईय। अजिमाया अनुन्नव जोर भयो,
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