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(३५) देख्या जग सहु जोई।अवधू॥
ए आंकणी॥ समरस नाव जला चित्त जाके, थाप जथाप न दोई॥ अविनाशीके घरकी बातां, जानेंगे नर सोई॥अव०॥१॥ राव रंक नेद न जाने, कनक उपल सम लेखे ॥ नारी नागणीको नहीं परिचय, तो शिवमंदिरदेखे॥अव ॥२॥ निंदा स्तुति श्रवण सुणीने,
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