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(२३६) प्रीतम प्रीतम करती में दारी॥
प्री० ॥ ए आंकणी॥ ऐसे निखर नये तुम कैसे, अजहुँन लीनी खबर हमारी॥ कवण नांत तुम रीछत मोपें, लख न परत गतिरंच तिहारी॥
प्री० ॥१॥ मगन नए नित्य मोह सुता संग, विचरत हो स्वबंद विहारी॥ पण इण वातनमें सुण वालम,
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