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( २३४ )
अब लागी अब लागी ॥ अब लागी अब लागी, अब प्रीत सही री ॥ अब० ॥ ए कणी ॥ अंतर्गत की बात अली सुन, मुखयी मोपें न जात कही री ॥ चंद चकोरकी उपमा इ समे, साच कहुं तोड़े जात वदी री ॥
अ० ॥ १ ॥
जलधर बुंद समुद्द समाणी, भिन्न करत कोन तास मदीरी ।
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