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(१५) सुरनि सुमनवर यदकर्दम, कर अर्चित देवनकादेखो॥३॥ निरख चरन मन दरखनयो
अति, वामा नंदजूक|देखोग। चिदानंद अब सकल मनोरथ, सफल नये मनके॥देखोगा|
॥पद पन्नरमुं॥राग केरबो॥ ॥अखीयां सफल नई, अलि निरखित नेमि जिनंद ॥
अ०॥ ए आंकणी ॥
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