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(१७०) धरती दूध जमाया। माखन था सो विरला पाया, गसे जगतनरमाया| | थड बिनुं पत्र पत्र बिनुं तुंबा, बिन जीच्या गुण गाया ॥ गावनवालेका रूप न रेखा, सुगुरु सोही बताया॥oय॥ आतमअनुभव बिन नहीं जाने, अंतर ज्योति जगावे॥ घट अंतर परखे सोही मूरति, आनंदघन पद पावअ॥६॥
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