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शाखा पत्र नहीं कबु उनकूं, अमृत गगनें लागा ॥ प्र० ॥ १२ ॥ तरुवर एक पंबी दोन बेठे, एक गुरु एक चेला | चेलेने जुग चुण चु खाया, गुरु निरंतर खेला ॥ अ० ॥ २ ॥ गगनमंडल के प्रधबिच कूबा,
उदां दे मीका वासा ॥ सगुरा होवे सो जर जर पीवे, नगुरा जावे प्यासा ॥ ० ॥ ३ ॥ गगनमंडल में गजच्यां बिहानी,
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