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( १६७) जिन मैरो काम बिगारो॥अरी
॥पद सत्ताjमुंगराग कल्याण ॥ ॥या पुजलका क्या विसवासा, हे सुपनेका वासा रे॥या ॥
ए आंकणी॥ चमतकार विजली दे जैसा, . पानी बिच पतासा॥ या देदीका गर्व न करना, जंगल दोयगा वासाया॥२॥
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