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(१५३) सत असत गुन परजय परनति, नाव सुनाव गति दो॥चे॥१॥ स्व पर रूप वस्तुकी सत्ता, सीके एक न दो॥ सत्ता एक अखंड अबाधित, यद सिद्धांत पख दोशाचे॥श अनवय व्यतिरेक देतुको, समजी रूप ब्रम खो॥ आरोपित सब धर्म और है, आनंदघन तत सो॥चे॥३॥
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