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विवदारे लख दोय || कुशल खेमनादिदी दो, नित्य अबाधित होय ॥ पू०॥ ३ ॥ सुन विवेक मुखतें नइ दो, बानी अमृत समान ॥ सरधा समता दो मिली दो, ल्याई आनंदघन तान || पू० ॥ ४
॥ पद नेव्याशी मुं॥रागधन्याश्री ॥ ॥ चेतन सकल वियापक दोइ ॥ सकल ० ॥ चे० ॥
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