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(१४ए) देखे अपूरव रीत॥स॥२॥ वीर कहे एती कहुं दो,
आए आए तुम पास ॥ कदे समता परिवारसँ हो, दम दै अनुजव दासास ॥३॥ सरधा सुमता चेतना हो, चेतन अनुन्नव आदि। सगति फोरवे निज रूपकी दो, लीने आनंदघन मांदि।स । ॥पद सत्याशी मुंगराग धमाल ॥ ॥विवेकी वीरा सह्यो न परे,
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