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आनंदघन युं सघन धारा, तबदी दे पवइ हो ॥ पी० ॥ ३ ॥
॥ पद सीतेरमुं ॥ ॥ साखी ॥
॥ तम अनुभव रस कथा, प्याला पिया न जाय ॥
मतवाला तो ददि परें, निमता परे पचाय ॥ १॥
॥ राग वसंत, धमाल ॥ || बिले लालन नरम कहे,
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