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(१२०) ॥प्रीतकी रीत नहीं दो प्रीतम
॥प्रीत ॥ मैं तो अपनो सरव शंगारो, । प्यारेकी न लई हो॥प्री० ॥१॥ में वस पियके पिय संग औरके, या गति किन सीखई॥ उपगारी जन जाय मनावो, जो कबुनई सोनई हो।प्रीश विरदानलजाला अतिदि क
ठिन है, मोसें सही न गई॥
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