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( १९४) जडीन सके जीव दंस॥ विरदानल जाला जली प्यारे, पंख मूल निरवंस ॥पी०॥॥ ऊसासासें वढानकों रे, वाद वदे निशि रांड ॥ न मने ऊसासामनी प्यारे, हटके न रयणी मांडपी॥५॥ इद विधि जे घरधणी रे, उससुंरदे उदास॥ हरविध आइ पूरी करे प्यारे, आनंदघन प्रनु आस॥पी६
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