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( ए४ )
पीउडो पर घर जाय ॥ पूरवदिसि पश्चिमदिसि रातडो, रवि अस्तंगत थाय ॥ बा० ॥ १ ॥ पूनम ससी सम चेतन जाणीये, चंद्रातप सम जाण ॥ वादल र जिम दल थिति प्राये, प्रकृति प्रनावृत जाण ॥
बा० ॥ २ ॥
पर घर मतां स्वाद कियो बढ़े, तन धन यौवन दा || दिन दिन दीसे अपयश वाधतो,
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