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चैत्य-शब्दार्थ :
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अपेक्षा से ही चैत्य वृक्ष कहा है। इससे ज्ञान अर्थ सिद्ध हुआ, दूसरा वंदना में चेइयं शब्द आया है उसका अर्थ भी ज्ञानवंत होता है। राजप्रश्नीय की टीका में साक्षात् प्रभु के वन्दन में भी चैत्य शब्द आया है वहां टीकाकार ने 'चैत्यं सु प्रशस्त मनोहेतुत्वात्' कह कर सर्वज्ञ को ही चैत्य कह दिया है। और दिगम्बर सम्प्रदाय के षड़पाहुड़ में तो ‘णाण मयं जाण चेदिहरं' (ज्ञान मय आत्मा को चैत्यगृह जानो) कहा है। इस पर से ज्ञान और ज्ञानी अर्थ भी सिद्ध होता है।
(६) गति विशेष अर्थ - ज्ञाताधर्म कथांग के अध्ययन १४-८-६ में निम्न प्रकार आया है।
सिग्धं, चण्डं, चवलं, तुरियं, चेइयं ।
(७) बनाना - अर्थ आचारांग अ० ११ उ० २ में इस प्रकार आया है, -
आगारिहिं आगाराइं चेइयाइं भवंति (८) वृक्ष - अर्थ उत्तराध्ययन अ०७ में इस प्रकार आया है। वाएण हीरमाणम्मि चेइयंमि मणोरमे
ऐसे विशेषार्थी चैत्य शब्द का केवल जिन-मन्दिर और जिनमूर्ति अर्थ करना मात्र हठधर्मीपन ही है.।
विजयानन्द सूरिजी सम्यक्त्व शल्योद्धार हिंदी आवृत्ति ४ पृष्ठ १७५ में चैत्य शब्द का अर्थ करते हैं कि -
'जिन मंदिर, जिन-प्रतिमा को चैत्य कहते हैं और चोंतरे बंद वृक्ष का नाम चैत्य कहा है इसके उपरान्त और किसी वस्तु का नाम चैत्य नहीं कहा है।
इस प्रकार मनमाने अर्थ कर डालना उक्त प्रमाणों के सामने कोई महत्त्व नहीं रखता क्योंकि इन तीन के सिवाय अन्य अर्थ नहीं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only
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