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श्री लोकाशाह मत-समर्थन
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अन्तःपुर में भी विश्वास पात्र हैं, जो शीलव्रत गुणव्रत प्रत्याख्यान आदि का पठन करते थे, अष्टमी, चतुर्दशी पूर्णिमा, अमावस्या को पौषधोपवास करने वाले, साधु साध्वियों को दान देने वाले, शंका कांक्षादि दोष रहित व सूत्र अर्थ जानकार ऐसे अनेक गुण वाले थे,. उन्होंने स्थविर भगवन्त से तप संयम आदि विषयों पर प्रश्नोत्तर किये थे, इत्यादि।'
जबकि-श्रावकों के धर्म कर्त्तव्यों के वर्णन करने में मूर्ति-पूजा की गंध भी नहीं है, तो फिर स्नान करने के स्नानागार में मूर्ति-पूजा का क्या सम्बन्ध? अतएव ‘कयबलिकम्मा' से जिन मूर्ति पूजने का मन कल्पित अर्थ करके उन माननीय श्रावकों को मूर्ति पूजक ठहराने की मिथ्या कोशिश न्याय संगत नहीं है। ऐसी निर्जीव दलीलों में तो मूर्ति-पूजा का सिद्धांत एकदम लचर और पाखण्ड युक्त सिद्ध होता है।
८. चैत्य-शब्दार्थ प्रश्न - चैत्य शब्द का अर्थ जिन-मन्दिर और जिन-प्रतिमा नहीं तो दूसरा क्या है?
उत्तर - चैत्य शब्द अनेकार्थ वाची है, प्रसंगोपात प्रकरणानुकूल ही इसका अर्थ किया जाता है, जिनागमों में चैत्य शब्द के निम्न अर्थ करने में आये हैं।
सुप्रसिद्ध जैनाचार्य पूज्य श्री जयमल जी म. सा. ने चैत्य शब्द के ११२ अर्थों की गवेषणा की है। आगम प्रकाशन समिति ब्यावर द्वारा प्रकाशित औपपातिक सूत्र (पृ० ६-७) में चैत्य शब्द के ये अर्थ प्रकाशित हुए हैं जो इस प्रकार हैं -
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