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और श्रमणोपासक धर्म दोनों के पालन के विधि-विधानों का सविस्तार वर्णन आगमों में मिलते हैं।
__ यहाँ प्रश्न होता है कि आगमों में साधु और श्रावक धर्म के पालन के नियमों का निरूपण तो किया है, पर क्या साधु और श्रावक दोनों आगम पढ़ने के अधिकारी है अथवा मात्र साधु ही आगम पढ़ सकते हैं श्रावक नहीं पढ़ सकते? क्योंकि जैन धर्म में एक ऐसा वर्ग भी है जो श्रावकों को आगम पढ़ने का निषेध करता है। उन्हें इसके लिए अयोग्य करार दे रखा है। किन्तु आगमों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि आगमकार तो साधु और श्रावक (श्रमणोपासक) दोनों को आगम पढ़ने का समान अधिकार देते हैं। आगमों में श्रावकों के आगमज्ञ होने के अनेक प्रमाण मिलते हैं। वे सूत्र और अर्थ दोनों को जानने वाले तत्त्वज्ञ थे। नीचे लिखे प्रमाण श्रावकों का आगमज्ञ होना सिद्ध करते हैं।
१. आनन्द-कामदेवादि आगमज्ञ थे। उनके लिए समवायांग सूत्र और नंदी सूत्र में कहा गया है "सूयपरिग्गहा तवोवहाणाई"वे सूत्र को ग्रहण किये हुए और उपधान आदि तप सहित थे।
२. पालित श्रावक के लिए उत्तराध्ययन सूत्र अ० २१ में लिखा है - "णिगंथे पावयणे सावए से वि कोविए" अर्थात् वह निर्ग्रन्थ प्रवचन में पण्डित था।
। ३. राजमती जी दीक्षा लेने के समय "बहुश्रुता" थी। उनके लिए उत्तराध्ययन सूत्र के बाईसवें अध्ययन में लिखा है "सीलवंता बहुस्सुया"।
४. ज्ञाता धर्म कथांग सूत्र के १२वें अध्ययन में "सुबुद्धि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only
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