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अंबड़ - श्रावक (संन्यासी)
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आगमोदय समिति के औपपातिक सूत्र के चालीसवें सूत्र पृष्ठ ६७ पं० ४ से -
अम्मडस्सणो कप्पई अन्नउत्थिया वा अन्नउत्थिय देवयाणि वा, अण्णउत्थिय परिग्गहियाणि वा 'चेइयाई' वंदित्तए वा णमंसित्तए वा जाव पज्जुवासित्तए वा णण्णत्थ अरिहंते वा अरिहंत चेइयाई वा ।
इस पर से उपासगदशांग का अरिहंत शब्द स्पष्ट प्रक्षिप्त क्षेपक सिद्ध होता है, इसके सिवाय कल्पनीय प्रतिज्ञा में जो अरिहंत शब्द है वह भी अभी विचारणीय है, फिर भी जो इसको निःसंकोच मान लिया जाय तो भी इसका परमार्थ गणधरादि से लेकर सामान्य साधुओं के वंदन का ही स्पष्ट होता है, अन्यथा अंबड़ के लिए गणधरादि के वन्दना सिद्ध करने का कोई सूत्र ही नहीं रहेगा। सिवाय अरिहंत और अरिहंत चैत्य (साधु) को वन्दन नमस्कार करना कल्पता है।
इस पाठ में अरिहंत चैत्य शब्द आया है, जिसका साधु अर्थ गुरु गम्य से जाना है और वो है भी उपयुक्त, क्योंकि यदि अरिहंत चैत्य से साधु अर्थ नहीं लिया जायगा तो अन्य तीर्थी के साधु वन्दन का निषेध नहीं होगा और जैन के साधुओं को वन्दन नमस्कार करने की प्रतिज्ञा भी नहीं की गई ऐसा मानना पड़ेगा, अतएव सिद्ध हुआ कि - अरिहंत चैत्य का अर्थ अरिहंत के साधु भी होता है और इसी शब्द से गणधर, पूर्वधर, श्रुतधर, तपस्वी आदि मुनियों को वन्दनादि करने की अंबड़ ने प्रतिज्ञा की थी । यह हर्गिज नहीं हो सकता कि अरिहंत के जीते जागते 'चैत्यों' (गणधर यावत् साधु) को छोड़कर उनकी जड़ मूर्ति को वन्दनादि करने की अंबड़ मूर्खता करे । अतएव
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