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द्रौपदी 米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米 निदान प्रभाव से विलासिता की पूरी आकांक्षा थी, अखण्ड भोग प्राप्त करना ही जिसका मुख्य लक्ष्य था, बस इसी ध्येय को लक्ष्य कर द्रौपदी ने अपनी यह इच्छा पूर्ण करने को ऐसे ही देव की मूर्ति की पूजा की। उसे उस समय बस केवल इसी की आवश्यकता थी।
यदि द्रौपदी उस समय श्राविका ही होती, तो वह पांच पति क्यों वरती? अगर पांच पति से पाणिग्रहण करने में उस पर निदान प्रभाव कहा तो पूजा के समय जो कि स्वयंवर के लिए प्रस्थान करते समय की थी, निदान प्रभाव कहां चला गया? इस पर से यह सत्य निकल आता है कि द्रौपदी की पूजी हुई मूर्ति तीर्थंकर की नहीं होकर कामदेव ही की थी। सौभाग्य एवं भोग जीवन की सामग्री की पूर्णता एवं प्रचुरता ऐसे ही देव से चाही जाती है।
(आ) विवाह के समय द्रुपद राजा ने मद्य, मांस का आहार बनवाया था, यह द्रौपदी के परिवार को ही अजैन होना बता रहा है। इस पर से भी द्रौपदी के श्राविका नहीं होने का ही अनुमान ठीक मिलता है।
(इ) द्रौपदी के विवाह पश्चात् उसका पांच पति रूप निदान पूर्ण होकर सम्यक्त्व की बाधा भी दूर हो जाती है, और विवाह बाद के वर्णन से ही द्रौपदी का श्राविका होना पाया जाता है, लग्न पश्चात् के जीवन में ही व्रत, नियम, तपश्चर्या का कथन है। संयमाराधन का भी इतिहास मिलता है, किन्तु लग्न के बाद से लेकर संयमाराधन और अंतिम अनशन के सारे जीवन विस्तार में कहीं भी मूर्ति-पूजा का उल्लेख खोज करने पर भी नहीं मिलता है। यदि मूर्ति-पूजा धार्मिक करणी में मानी गई होती तो उसका वर्णन भी धार्मिक करणी के साथ अवश्य मिलता। इस पर से भी धार्मिक कृत्यों में मर्ति-पजा की उपादेयता सिद्ध नहीं हो सकती।
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