________________
_ [38] ******************* ********************** दिग्दर्शन भी लेखक ने कराया है। इस पुस्तक को लिखकर श्रीमान् डोशीजी ने स्वधर्म रक्षा की है और सत्यान्वेषी मुमुक्षुओं को सत्य घटना बताकर धर्म प्राण लोकाशाह और समस्त स्थानकवासी समाज की सेवा की है तथा सत्य सिद्धान्तों के प्रति अपनी अटल श्रद्धा व्यक्त कर मिथ्या प्रलाप को जड़ से उखाड़ने की कोशिश की है। एतदर्थ आपको धन्यवाद।
इस पुस्तक के लेखन का अभिप्राय किसी के सिद्धांतों पर आक्रमण करना नहीं है, किन्तु मानव जीवन सत्यमय बने और सत्यमार्ग की गवेषणा कर आराधना करे यही है।
__ अतः पाठकों से निवेदन है कि वे इस पुस्तक को शांत भाव से निष्पक्ष बनकर आद्योपान्त पढ़कर सत्य मार्ग का अवलम्बन करें तथा मिथ्या कुयुक्तियों से अपने को बचाते रहे। इत्यलम् सुज्ञेषु किं बहुना?
अजमेर ता० ११-८-१९३६
शतावधानी पं० मुनि श्री रत्नचन्द्रजी महाराज का चरण किंकर
मुनि पूनमचन्द्र
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org