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श्री लोकाशाह मत - समर्थन
बाहर हो गये और भावनगर से मूर्ति पूजक पत्र 'जैन' में हिम्मत और बहादुरी पूर्वक उन्होंने इस प्रकार छपवाया कि -
'श्रीमद् भद्रबाहु स्वामी कृत व्यवहार सूत्र चूलिका छेज नहिं......ए तो संतबाल रचित छे....... बिलकुल जाली तथा नवीन सूत्र छे........ कल्पित छे........ आदि ।'
यद्यपि इन महात्मा का उक्त कथन एकान्त मिथ्या है, तथापि इन की दूरदर्शिता का पूर्ण परिचायक । यदि ये ऐसा नहीं करे तो कथित मूर्ति - पूजा की कल्पितता स्पष्ट होकर इनकी जमी हुई जड़ खोखली हो जाय, इसके सिवाय ( उक्त ग्रन्थ को कल्पित कहे सिवाय) इनके पास अपने बचाव का दूसरा मार्ग भी तो नहीं है।
अब यह लेखक न्याय का गला घोंटने वाले इन न्यायविजयजी के उक्त लेख को मिथ्या सिद्ध करने के लिए इन्हीं के मतानुयायी और हमारे पूर्व परिचित मूर्ति-मंडन प्रश्नोत्तरकार के निम्नलिखित प्रमाण देता है, किन्तु जिन्हें देखकर श्री न्यायविजयजी को 'व्यवहार सूत्र की चूलिका श्री भद्रबाहु स्वामी रचित है' ऐसा सत्य स्वीकारने की सूझे और जनता इनके असत्य कथन पर विश्वास नहीं कर प्रमाण युक्त सत्यबात को स्वीकार करें, देखिये मूर्ति मंडन प्रश्नोत्तर -
(१) श्री भद्रबाहु स्वामीए पण श्री व्यवहार चूलिका मां अविधिनो निषेध करी विधिनो आदर कर्यो छे । (पृ० २६३) (२) श्री भद्रबाहु स्वामी वली व्यवहार सूत्र नी चूलिका मां चौथा स्वप्न ना अर्थ मां कहे छे के..
( पृ० २६४)
(३) श्री भद्रबाहु स्वामीए व्यवहार सूत्र नी चूलिका मां द्रव्य लिंगी चैत्य स्थापन करवा लागी जशे त्यां मूर्ति स्थापना नो अर्थ कर्यों
छे।
( पृ० २८६)
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