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________________ ११५ श्री लोंकाशाह मत-समर्थन ********************************************** उन जीवों का उपकार होना तथा स्वयं डाक्टर बनना नहीं मानते हैं, किन्तु परोपकारी डाक्टर की पंक्ति में बैठने का डोल करने वाले ये पूजक बन्धु तो बल पूर्वक हत्या करते हुए भी अपने आप को उस हत्यारे की तरह निर्दोष और उससे भी आगे बढ़कर परोपकारी बतलाते हैं, भला यह भी कोई परोपकार है? इसमें परोपकार उन जीवों का हित कैसे हुआ? हां, नाश तो अवश्य हुआ। डाक्टरों को तो चिकित्सा प्रारम्भ करने के पूर्व प्रमाण पत्र प्राप्त करना पड़ता है, किन्तु हमारे पूजक बन्धु तो स्वतः ही डाक्टर बन जाते हैं, इन्हें किसी प्रमाण पत्र की आवश्यकता ही नहीं, गुरु कृपा से इनके काम बिना प्रमाण के भी चल सकता है, किन्तु इन्हें याद रखना चाहिये कि इस प्रकार अज्ञानता पूर्वक धर्म के नाम पर किये जाने वाले व्यर्थ आरंभ का फल अवश्य दुःखदायक होगा, वहां आपका यह मिथ्या उदाहरण कभी रक्षा नहीं कर सकेगा। अतएव पूजा के लिये होती हुई हिंसा में डाक्टर का उदाहरण एकदम निरर्थक है। यहां तो इसका उल्टा उदाहरण ही ठीक बैठता है। ३५.न्यायाधीशया अन्यायप्रवर्तक प्रश्न - जिस प्रकार न्यायाधीश नरहत्या करने वाले को राज्य नियमानुसार प्राण दण्ड देता हुआ हत्यारा नहीं हो सकता उसी प्रकार मूर्ति-पूजा में धर्म नियमानुसार होती हुई हिंसा हानिकारक नहीं हो सकती, फिर ऐसी शास्त्र सम्मत पूजा को क्यों उठाई जाती है? यह दृष्टान्त एक मूर्ति-पूजक साधु ने मूर्तिपूजा में होती हुई हिंसा से बचने को दिया था। उत्तर - आपका डाक्टरी से निष्फल होने पर न्यायाधीश के Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003679
Book TitleLonkashah Mat Samarthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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