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डाक्टर या खूनी? **********************************************
मूर्ति-पूजा में जो भी आरम्भ होता है वह सब का सब निरर्थक व्यर्थ और अन्त में दुःख दायक है। विवेकी श्रावक जो गृहस्थाश्रम में स्थित होने से आरम्भ करता है, वह भी आरम्भ को पाप ही मानता है, और इस प्रकार अपने श्रद्धान् को शुद्ध रखता हुआ ऐसे पाप से पिण्ड छुड़ाने की भावना रखता है। किन्तु मूर्तिपूजा में जो आरम्भ होता है वह हेय होते हुए भी उपादेय (धर्म) माना जाकर श्रद्धान को बिगाड़ता है। और जब आरम्भ. को उपादेय धर्म ही मान लिया तब उसे त्यागने का मनोरथ तो हो ही कैसे? अतएव मूर्ति-पूजा में होने वाला आरम्भ निरर्थक अनावश्यक है तथा श्रद्धान को अशुद्ध कर सम्यक्त्व से गिराने वाला है अतएव शीघ्र त्यागने योग्य है।
३४. डाक्टर या खूनी? प्रश्न - जिस प्रकार डाक्टर रोगी की करुण दशा देखकर उसे रोग मुक्त करने के लिए कटु औषधि देता है, आवश्यकता पड़ने पर शस्त्र क्रिया भी करता है, जिससे रोगी को कष्ट तो होता ही है, किन्तु इससे वह रोग मुक्त हो जाता है और ऐसे रोग हर्ता डाक्टर को आशीर्वाद देता है। कदाचित् डाक्टर को अपने प्रयत्न में निष्फलता मिले, और रोगी मर जाय तो भी रोगी के मरने से डाक्टर हत्यारा या खूनी नहीं हो सकता, क्योंकि - डाक्टर तो रोगी को बचाने का ही कामी था। इसी प्रकार द्रव्य पूजा में होने वाली हिंसा उन जीवों की व पूजकों की हितकर्ता ही है, ऐसे परोपकारी कार्य (मूर्तिपूजा) का निषेध क्यों किया जाता है?
उत्तर - परोपकारी डाक्टर का उदाहरण देकर मूर्ति पूजा को
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