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१०८ क्या पुष्पों से पूजा पुष्पों की दया है? ********************************************** अनुमोदन का जघन्य काम मुनि महोदय किस प्रकार करें? यह समझ में नहीं आता।
. इसके सिवाय 'कित्तिय, वंदिय, महिया' इन तीनों शब्दों के लिए करण योगों की भिन्नता नहीं है, तीनों शब्द अपेक्षा रहित है, इनके लिए किसी के लिए एक करण और किसी के दो तीन करण या योग का कहना मिथ्या है। ये तीनों शब्द साधु और श्रावक को समान ही लागू होते हैं इनमें से दो शब्दों को छोड़ कर केवल एक ‘महिया' शब्द के लिए पक्षपात वश कुतर्क करना, यह कैसे सत्य हो सकता है? यदि महिया शब्द से साधु स्वयं पुष्पों से पूजा नहीं करके दूसरों की अनुमोदना करे तो क्या त्रिकरण साधु त्यागी स्वयं तो हिंसा नहीं करे किन्तु दूसरे हिंसा करने वालों की अनुमोदना तथा हिंसाकारी कार्य का अन्य को उपदेश कर सकते हैं क्या?
हाँ! एक पंचमहाव्रतधारी साधु कहलाने वाले इस प्रकार हिंसा की अनुमोदना करने का और हिंसा करने का उपदेश दें, ग्रन्थों में वैसा विधान करें, यह तो मूर्तिपूजकों का भारी पक्ष व्यामोह ही है, ऐसी विरुद्ध प्ररूपणा शुद्ध साधुमार्ग में तो नहीं चल सकती।
आशा है कि - अब तो पाठक इस महिया शब्द के अर्थ में होने वाले अनर्थ को और उसके कारण को समझ गये होंगे, जबकिजैनागमों में मूर्ति पूजा और साक्षात् की भी सावद्य पूजा का विधान ही नहीं है, फिर ऐसे कुतर्क को स्थान ही कहां से हो सके? और पुष्प पूजा से पुष्पों की दया होने का वचन साधु तो ठीक पर अविरति सम्यक्त्वी भी कैसे कह सकें? नहीं, कदापि नहीं।
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