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उपसंहार
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आक्रमण कर रहे हैं, वे केवल द्वेष पोषण के लिए और साथ में शिथिलाचार को शास्त्र सम्मत सिद्ध करने के लिए ही हैं। इन्हें या तो अपने सामाजिक ग्रन्थों का ज्ञान नहीं है या ये जान बूझकर अभिनिवेश की प्रबलता से अपने हठ को छोड़ते नहीं हैं।
परन्तु, हाँ मिथ्याभिमान! तुझे कुछ भी विचार नहीं होता। अरे! तुझे कम से कम इतना तो ध्यान रखना चाहिए कि मैं पतित पावन जैन धर्म पर से तो अपनी माया हटा लूँ और साधु एवं पंचमहाव्रतधारी, वीर पुत्र एवं मरुधर केशरी कहे जाने वाले व्यक्तियों को तो अपनी जाल से मुक्त करूँ।
देख! तेरे ही कारण आज जैन साधु नामधारी लोग सिद्धान्त सम्मत विधान को जानते हुए भी झूठा कह रहे हैं।
देख! यदि मेरी सलाह माने, तो मैं तुझे यही कहूँगा कि अब बंद कर, बहुत हो चुका, जैन समाज पर से तूं अपना पञ्जा हठा ले, तेरे लिए और भी बहुत से स्थान हैं। सारा संसार पड़ा है।
यदि अब भी तू नहीं समझेगा तो भविष्य में न जाने क्या होगा? सुन्दरजी जैसे सुन्दर हृदयी (?) लोगों के कारण समाज की शान्ति भयभीत है।
प्रिय पाठक वृन्द! यदि आपको मेरे इतने लेखों पर से कुछ पूछना हो, या मेरे दिये प्रमाणों में सन्देह हो तो कृपा कर मुझे लिखने का कष्ट करें। मैं यथाशक्य अवश्य आपका समाधान करूँगा।
निबन्ध में दिये हुए प्रायः सभी प्रमाण मेरे पास संग्रहित है। शासन देव, शासन विरोधियों को सद्बुद्धि प्रदान करें।
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