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शंका-समाधान
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__ इन्हें मालूम नहीं है कि गत 'अजमेर साधु सम्मेलन' में देशी परदेशी ही नहीं, पर साधुमार्गी जैन संसार के लगभग सभी सम्प्रदाय के प्रसिद्ध प्रसिद्ध विद्वान् मुनि महात्मा विद्यमान थे और वहाँ पारस्परिक प्रेम का कितना जीता जागता दृश्य उपस्थित हुआ था उसके विरुद्ध जो सुन्दरजी ने अपने उदरस्थ विष को उगलने के लिये कलम कृपाण चलाई है, वह वास्तव में इनके नाम को निरर्थक ही सिद्ध करती है। इस तरह किसी भी समाज का अनादर करना सभ्यता से बाहर है।
वैसे तो हम भी मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के खरतर, तपा, त्रिस्तुतिक, चतुःस्तुतिक, श्वेत वस्त्रधारी, पीताम्बरी, व्याख्यान में मुँहपत्ति बाँधने वाले और साम्वत्सरिक विरोध वाले आदिकों के चित्र बनवा कर एक से दूसरे को मिथ्यात्वी, भ्रष्टाचारी, उत्सूत्र भाषी, निह्नव आदि कहला सकते हैं और वह भी प्रमाणों सहित, पर हम इस तुच्छ प्रवृत्ति को ‘सुन्दरजी' महाशय के ही योग्य समझते हैं और इन्हीं के अर्पण करते हैं, जिससे सुन्दरजी की असुन्दरता और बढ़े व मुख उज्ज्वल हो। इसके सिवाय हम अपनी ओर से अभी कुछ भी कहना नहीं चाहते। यदि इन लोगों की यही रफ्तार रही तो हमें भी समय पाकर “शाठ्यं । प्रतिशाठ्यं कुर्यात्" की नीति को अपनाना पड़ेगा।
(२२) शंका - जैनागम से किसी भी जैन साधु के मुखवस्त्रिका मुँह पर बाँधी रखने का उदाहरण आप दिखा सकते हैं क्या?
समाधान - महाशय! पूर्वोक्त प्रकरणों से यद्यपि आपकी शंका निर्मूल हो जाती है, तथापि विशेष समाधान के लिए और देखिये -
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