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________________ [7] 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 मुखवस्त्रिका के समर्थन में विभिन्न ग्रन्र्थों में उनके द्वारा दिए गए उद्धरण के साथ "मुखवस्त्रिका" जैन साधु समाज को हमेशा मुख पर बांधना क्यों आवश्यक है इन सबका सप्रमाण समाधान आपने इस पुस्तक में दिया है। अतएव प्रत्येक स्थानकवासी को इसका अध्ययन करना आवश्यक है। ___ इस पुस्तक के पूर्व में दो संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं, प्रथम संस्करण विक्रम संवत् १९६४ एवं दूसरा संस्करण विक्रम संवत् १९६८। यानी दूसरे संस्करण को प्रकाशित हुए लगभग ६० वर्ष हो चुके हैं। इतने लम्बे अंतराल के बाद पुस्तक का प्रकाशन किया जा रहा है। सुज्ञ वर्ग इस पुस्तक को आद्योपान्त पढ़ कर सही वस्तु स्थिति को समझने का कष्ट करें। इस पुस्तक के साथ तीन अन्य पुस्तकें (लोकाशाह मत समर्थन जिनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा, विद्युत् (बिजली) सचित्त तेऊकाय है) प्रकाशन के बारे में धर्म प्रिय उदारमना श्रावक रत्न श्रीमान् वल्लभचन्दजी सा. डागा, जोधपुर निवासी के सामने चर्चा की तो आपको अत्यधिक प्रसन्नता हुई। आपने चारों पुस्तकों के प्रकाशन का सम्पूर्ण खर्च अपनी ओर से देने की भावना व्यक्त की। मैंने आपसे निवदन किया कि फ्री पुस्तकें देने में पुस्तक की उपयोगिता समाप्त हो जाती है तथा उसका दुरुपयोग होता है। अतएव इन चारों पुस्तकों का दृढ़धर्मी प्रियधर्मी उदारमना श्रावक रत्न श्रीमान् वल्लभचन्दजी सा. डागा, जोधपुर के अर्थ सहयोग से अर्द्ध मूल्य में प्रकाशन किया जा रहा है। आदरणीय डागा साहब की उदारता के लिए समाज पूर्ण रूपेण परिचित है। आप संघ की प्रवृत्तियों Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003678
Book TitleMukhvastrika Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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